Ajay mohan semwal,Dehradun/8-10-2025
आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने बड़ा दावा किया है कि जौनसार क्षेत्र को कभी भी अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि 24 जून 1967 को राष्ट्रपति आदेश के तहत उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखंड सहित) में सिर्फ पाँच जनजातियों — भोटिया, बुक्सा, जानसार, राजी और थारू — को एसटी मान्यता दी गई थी। इसके अलावा किसी भी जाति/समुदाय को एसटी सूची में शामिल नहीं किया गया।
एडवोकेट नेगी का कहना है कि जौनसार में रहने वाले ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को आरक्षण का लाभ मिलना पूरी तरह से गैरकानूनी है। इन जातियों को निर्गत किए गए एसटी प्रमाणपत्र अवैध हैं और इसका सबसे बड़ा नुकसान प्रदेश के सामान्य वर्ग के योग्य अभ्यर्थियों को हो रहा है।
“लोकुर समिति रिपोर्ट” का हवाला
नेगी ने दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि 1965 में भारत सरकार ने बी.एन. लोकुर की अध्यक्षता में “लोकुर समिति” का गठन किया था। समिति ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश (तब उत्तराखंड सहित) में एसटी की स्थिति सीमित है और केवल कुछ ही जनजातियों को मान्यता दी जा सकती है। इसके आधार पर ही 1967 का राष्ट्रपति आदेश आया।
उन्होंने आरोप लगाया कि “जानसार” को “जौनसारी” बताकर टाइपिंग मिस्टेक का फायदा उठाया गया और इसका राजनीतिक उपयोग किया गया। यही कारण है कि दशकों से वहां के नेता जनता को गुमराह कर सत्ता में आते रहे।
संसद में भी सरकार ने किया स्पष्ट
एडवोकेट नेगी ने कहा कि संसद में 2003 और 2022 में पूछे गए सवालों के जवाब में केंद्र सरकार ने खुद माना कि जौनसार क्षेत्र एसटी घोषित नहीं है। 12 दिसंबर 2022 को लोकसभा में प्रश्न संख्या 786 के उत्तर में सरकार ने साफ किया कि उत्तराखंड में सिर्फ पाँच ही जनजातियाँ अनुसूचित हैं और इनमें कोई नई प्रविष्टि नहीं हुई है।
नेगी ने कहा कि ब्राह्मणों और स्वर्ण राजपूतों को जारी किए जा रहे एसटी प्रमाणपत्र पूरी तरह अवैध हैं। इनसे प्रदेश के सामान्य वर्ग के युवाओं के अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है। उन्होंने इस पूरे मामले को “बड़ी राजनीतिक ठगी” करार दिया।हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक जाएगी लड़ाई
आरटीआई एक्टिविस्ट ने साफ किया कि इस मामले को कानूनी रूप से लड़ा जाएगा। जरूरत पड़ी तो हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी जाएगी। साथ ही, वे केंद्र सरकार और संबंधित विभागों में भी शिकायत दर्ज कराएंगे, ताकि इस “घोटाले” की निष्पक्ष जांच हो सके।