रुद्रप्रयाग, 19 अगस्त। संस्कृत महाविद्यालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम में विद्यालय में प्रवेश लेने वाले नए छात्रों का यज्ञोपवीत और उपनयन संस्कार वैदिक मंत्रोच्चार के साथ किया गया. महाविद्यालय के सभी आचार्यों के सानिध्य में यह संस्कार संपन्न करते हुए विद्यालय में विधिवत रूप से संस्कृत दिवस मनाया गया.
महाविद्यालय के प्रधानाचार्य शशिभूषण बमोला ने नए छात्रों का स्वागत करते हुए उन्हें संस्कृत, वेद, व्याकरण, उपनिषदों की महत्ता के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि उपनयन व्रतन्त के बाद मनुष्य नियमों में बंध जाता है. फिर जीवन में स्वच्छन्दता का कोई स्थान नहीं रहता है. संयमित और नैतिक जीवन व्यतीत करना होता है.
विद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक जय प्रकाश गौड़ ने कहा कि हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत यानी जनेऊ संस्कार, प्रमुख संस्कारों में से एक है. इसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है. यह संस्कार सदियों से चली आ रही परंपरा है और भारतीय संस्कृति को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाता है. इस संस्कार में बालक को वेदों का अध्ययन करने, यज्ञों में भाग लेने और गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करने के लिए प्रेरित किया जाता है. साथ ही, उसे सदाचार, आत्मसंयम और कर्मठता जैसे जीवन मूल्यों को अपनाने का मार्गदर्शन भी मिलता है.
इस संस्कार में बालक को जनेऊ पहनाया जाता है. जनेऊ, सूत से बना एक पवित्र धागा होता है, जिसे बालक बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहनता है. जनेऊ को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है. ब्रह्मचारी तीन धागों की जनेऊ पहनते हैं, जबकि विवाहित पुरुष छह धागों की जनेऊ पहनते हैं. जनेऊ पहनने के बाद बालक को कई अन्य रीति-रिवाजों का पालन करना होता है.