आदिशक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रारंभ, नवरात्रि पर क्यों जलाई जाती है अखंड ज्योति ?

आदिशक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रारंभ, नवरात्रि पर क्यों जलाई जाती है अखंड ज्योति ?

आज से शारदीय नवरात्रि शुरू हो गए हैं। हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि पर देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि रहती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा और अनुष्ठान आरंभ होते हैं। नवरात्रि के पहले दिन देवी मां पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है।

कलश स्थापना के लिए पूजा स्थल की दिशा
आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो जाते है। नवरात्रि के पहले दिन देवी के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व होता है। कलश स्थापना के साथ नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि आरंभ हो जाते हैं। कलश स्थापना में दिशा का विशेष महत्व होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, देवी दुर्गा की पूजा के लिए ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) सबसे शुभ मानी जाती है। यह दिशा स्वच्छता, पवित्रता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। यदि इस दिशा में पूजा की जाती है, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और पूजा का प्रभाव अधिक शक्तिशाली होता है।

कलश स्थापना मुहूर्त 2024
पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त है। पहला शुभ मुहूर्त प्रातः काल 6 बजकर 2 मिनट से लेकर प्रातः काल 7 बजकर 7 मिनट तक रहने वाला है। इसके बाद नवरात्रि के घटस्थापना के लिए दूसरा शुभ मुहूर्त दोपहर के समय का है। यह मुहूर्त सुबह 11 बजकर 34 मिनट से लेकर दोपहर 12:21 तक रहेगा। इस दौरान भी कलश स्थापना कर सकते हैं।

नवरात्रि पर क्यों जलाई जाती है अखंड ज्योति ?
नवरात्रि का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। इसमें नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ विधि-विधान पूर्वक माता का स्वागत किया जाता है और अखंड ज्योति जलाई जाती है। अखंड ज्योति दुर्गा के प्रति समर्पण, आस्था और भक्ति का प्रतीक है। अखंड ज्योति का अर्थ है ‘निरंतर जलने वाला दीपक’। इसे देवी की कृपा और आशीर्वाद का स्रोत माना जाता है।

कलश स्थापना के नियम
नवरात्रि के नौ दिनों के लिए अखंड ज्योति प्रज्वलित करें और कलश स्थापना के लिए सामग्री तैयार कर लें।
कलश स्थापना के लिए एक मिट्टी के पात्र में या किसी शुद्ध थाली में मिट्टी और उसमें जौ के बीज डाल लें।
मिट्टी के कलश या फिर तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और मौली बांध लें।
इसके बाद लोटे में जल भर लें और उसमें थोड़ा गंगाजल जरूर मिला लें।
फिर कलश में दूब, अक्षत, सुपारी और सवा रुपया रख दें।
आम या अशोक की छोटी टहनी कलश में रख दें।
एक पानी वाला नारियल लें और उस पर लाल वस्त्र लपेटकर मौली बांध दें।
दुर्गा चालीसा का पाठ करें

आज से शुभ योग में शारदीय नवरात्रि शुरू हो गई है। इस बार पंच महायोग में नवरात्रि पर मां का आगमन हुआ है। इस पंच महायोग में घट स्थापना और आराधना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती है और शुभ फलों में वृद्धि होती है। नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है।

कलश स्थापना को घटस्थापना भी कहते हैं। देवीपुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवती देवी की पूजा-अर्चना की शुरुआत करते समय सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है। नवरात्रि पर मंदिरों और घरों में भी कलश स्थापित कर परमब्रह्म देवी दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार कलश को ब्रह्मा,विष्णु, महेश और मातृगण का निवास बताया गया है। नवरात्रि के पावन पर्व पर कलश स्थापना करने का अर्थ है ब्रह्रांड में समाहित सभी ऊर्जा तत्व का कलश में आह्नान करना। इससे घर में मौजूद होने वाली हर एक तरह की नकारात्मक शक्ति खत्म हो जाती है।

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